आज के उलझे युग में भी सरल हो सकते हैं लोग
मनोहर उसके अनोखे उदहारण थे
वहां भी ऐसा व्यक्ति चाहिए होगा
ईश्वर को वहां बुलाने के भी अपने कारण थे
जाओ तो जग से ऐसे जाओ
दुश्मन भी झुकाये माथा
शोर मचाने वाले जरा समझें
चुप वीरों की भी, गायी जायेगी गाथा
हम किसमें ढूंढेंगे आदर्श आपसा
शून्य बड़ा दिखता है खड़ा
स्वच्छ हो सकती है राजनीति भी
आपको देखा तो मानना ही पड़ा
कलाम, अटल, मनोहर ने बतलाया
बोलता पैसा नहीं, बोलता है काम
मन को हरने वाले की हो रही विदाई
आज आपको हर देशवासी का सलाम।
सुनील जी गर्ग
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