नया क्या था पिछले साल, नया क्या होगा अबकी बार,
किसी को तो लगी होगी, दुआ जो दी थी पिछली बार |
ऐसी ही सोच रखके हमने, फिर से चलाई है कलम ,
न पिछली बार खाई थी, न अबके खायेंगे कोई कसम |
वचन भर के, कसम खा के तोड़ने से अच्छा है,
यूँ ही ज़िन्दगी और जिंदगियों का साथ निभाइए,
नया न भी हो तो क्या, पुराना ठीक से करते चले जाईये,
महफिलों की रौनक से पहले, दिलों को नज़दीक लाईये ||
किसी को लग जाने वाली दुआ, फिर से लेते जाईये ||
सुनील जी गर्ग
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