आज स्वतंत्रता दिवस पर ये कविता लिखी आशा है पसदं आएगी
देश सत्तर के हों या सत्तर हजार के,
संस्कृतियाँ कभी बूढ़ी होती नहीं |
आज़ादी नयी हो या पुरानी ,
ज़िम्मेदारी कभी पूरी होती नहीं ||
फर्क इतना है कि कोई करता है महसूस,
कोई महसूस करके भी रखता है भुलाये |
आज़ादी का सच्चा मतलब समझते थे वो,
जिन्होनें इसके लिए थे प्राण गँवाए ||
आज़ादी की तभी सच्ची है बधाई,
जब हम सोचने दें सभी को आज़ादी से |
बातें रख पावें आगे सभी बेख़ौफ़,
यही है हमारी थाती*, आदि अनादि से ||
स्वतंत्रता दिवस की अनेकों अनेक शुभ कामनायें
सुनील जी गर्ग
थाती* – समय पर काम आने के लिए जमा की गयी वस्तु
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