लो फिर एक दीवाली आयी
खुशियाँ सबने फिर से ओढ़ींं।
रस्ते पर जो भटक गए थे
रौशनी की तरफ राहें मोड़ींं।।
इस बार पटाखे कम चलेंगे,
ऐसा है सरकारी आदेश।
सरकारें कुछ भटक गयीं हैं,
पाने को पूरा जनादेश ।।
अब तो लाखों दिए जलाना,
सरकारी एक अनुष्ठान है ।
अब कोई दर्द है नहीँ बताता,
बस भाव है एक, हर जन हैरान है।।
हाँ राम लौट कर आ गए हैँ,
मंदिर भी खुद ही बना लेंगे
बस बाकी सीता की विदाई
कोई वाल्मीकि तो अपना लेंगे
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