लो फिर एक दीवाली आयी
खुशियाँ सबने फिर से ओढ़ींं।
रस्ते पर जो भटक गए थे
रौशनी की तरफ राहें मोड़ींं।।
हमको भी आदत थी सदा की,
लाइट लगायी, मिठाई लाये ।
सबसे बड़ा त्यौहार है ये,
यही सोच खुद को रहे भरमाये।।
पर जाने क्यों इस बार अलग है भाव,
बाज़ार तो सजा है पर अलग हैं मायने।
आर्थिक मंदी है पर, जले हैं लाखों दीप,
मैसेज तो ढेर हैं, पर कोई न सामने ।।
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