मेरे बच्चे मुझसे पूछते हैं कि पापा आप जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं, उनको एक दार्शनिक जवाब। आशा है कुछ और बच्चों को भी समझ आएगा।
जैसे जेल के ताले टूटे
मन की मैं जायेगी टूट
कृष्ण चेतना लेगी जन्म
परम शक्ति में आस्था अटूट ।
परम यथार्थ ये जीवन अपना
अंतरमन भगवान है
पर मूरत में खोज हैं लेते
आखिर हम इंसान हैं ।
धर्म को मानो या न मानो
सांसें तो सच्चाई है
जीवन की ये अद्भुत रचना
किसी ने तो बनाई है ।
बना होगा बिग बेंग से मैटर
पर जीवन तो अमिट पहेली
इस रचना को ही हम हैं मानते
कुछ समझे सखा और सहेली
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
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