तेरी बात काटूं करता है मन,
बोलता है तो सोचूं डालूं खलल ।
तेरा सही भी ग़लत लगता है मुझे,
अनसुना कर मुझे तू बोलता रहा कर ।।
धीरे धीरे तुझसे भी कुछ जान ही लूँगा,
मुझे पता है मुझमें ये आदत है ।
तू खोज और नई बातें बता,
सीखने की मुझमें भी शिद्ददत है।।
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