आपकी याद
युग बीत जाएगा
मन जानता न था
आप साक्षात् न होंगे
दिल मानता न था
आपसे बहुत सीखा
मन था और भी
पर आपकी इंतज़ार में था
जहाँ एक और भी
आपने सुलझाईंं थीं
जीवन की पहेलियाँ
वक़्त ठहर जाता था
बातों में होती थी देरियाँ
महफ़िल जमती थी
आते थे चटनी पकौड़े
किस्से थे अनेक
याद होने लगे थे थोड़े थोड़े
सलाह थी आपकी
बिल्कुल ही सटीक
भविष्य कइयों का बनाया
बिल्कुल ही ठीक ठीक
आपका व्यक्तित्व
हम सबमें है अंश
आपसे मिलता था जो
बनता था आपका वंश
आपसे मिलने आते थे
आपके नाती और पोते
आपकी छाया में काश
कुछ और दिन बड़े होते
आपके लिए इस दुनिया में
थे मूल्यवान सबसे रिश्ते
काश कुछ और दिन हम सब
कर पाते आपको नमस्ते
खैर फिर नए युग आएंगे
कहीं तो रहेगा आपका नया रूप
महफ़िलें जरूर जमेंगी
आती रहेगी छाँव और धूप
मगर आपके लिए रुकने वाला,
वक़्त अब कभी न रुकेगा
आशीष पाने के लिए ये सिर
बस तस्वीर के आगे झुकेगा
सुनील जी गर्ग
(बड़े मामा जी पर पर और कविता लिखने का मन हुआ तो आज ट्रेन में ही ये पंक्तियाँ लिख दीं)
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