A special poem for the retiring great Motis of this group
Prof. V.K. Singh, Er. Ashutosh, Er. Pankaj Bakaya
यूं तो हंसीन शामें हुआ ही करती थीं अब तक,
इनमें कुछ नए जज़बात अब जुड़ेंगे ज़रूर |
ज़िन्दगी के कुछ नए सफ़े खुलेंगे, उड़ उड़ कर,
क्योँकि अब न रहेंगे पहले जैसे मजबूर ||
कुछ उदासी, कुछ खालीपन,
मगर लाएगा मुस्कराहटें भी |
रौशनी भी लगेगी बदली बदली,
और बदल जाएँगी आहटें भी ||
सब तो मालूम ही होता है,
आदमी की कुछ आदतें होती रिटायर |
बढ़ता जाता है और भी मज़ा,
अगर वो करता रहे हर चीज़ को एडमायर ||
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