करते करते, रब और राम,
हो गए पागल, लोग तमाम |
न बना किसी का कोई भी काम,
तरक़्क़ी पर लग गया पूर्ण विराम ||
हम मूरख बनते सुबह ओ शाम,
जीते तो हैं पर सांस हराम |
डाल नकेल कोई शख्स अनाम,
पहुंचाता हमको अंजाम ||
वो झट से उठा, लगा दिए दाम,
हम पढ़ते रह गए अपना कलाम |
हम पूछ सके न उसका नाम,
करने को कुछ नहीं, बस करो आराम||
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