बुझा के क्यों देखते हो     


Poems : Shayari13-Mar-2020


कभी यकबयक मारते हो नश्तर,
कभी दफ़्अतन पुचकारते हो।
यूं भी समझ कम मिली थी हमको,
बुझा के क्यों देखते हो जो दिए बालते हो।।

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