खा खा कर अब बोर हो गए
घर का समोसा, इडली, डोसा
खस्ता कचौरी मिली न कबसे
मुए कोरोना को रोज ही कोसा
कमर नहीं थी ऐसी लचक की
रोज लगा सके झाड़ू पोंछा
हाथ बटाएंगे वादा था हाँ
रोज की आफत किसने सोचा
मीट, टीम, और ज़ूम के रिश्ते
कब तक करेंगे हम ये दिखावा
व्हाट्सप्प भी जान को आ गया
अब अँगुलियों का दर्द न जावा
फेसबुक तो दुश्मन पहले से
मेरी प्लेट और गरम रोटी के बीच
इंस्टाग्राम अब नया ये दानव
कितनी डल गयीं सेल्फी खींच
अनलॉक की खबर अब आयी है
हलवाई समझो जुबां तक आ गया
बीमारी फिमारी सब अपनी जगह है
इसका मन से डर तो चला गया
पर वैसे ये सब मज़ाक तक ठीक है
ज़िन्दगी मज़ाक न करे, इसीलिए सम्हलना
बड़ा अच्छा लिखते थे ये चल पड़े फिर बाद में,
मैं भी रखूँगा ख्याल, आप भी अपना रखना ||
– सुनील जी गर्ग
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