अब खून नहीं खौलता किसी का,
आदत अपनी है सुविधाभोगी
सीमा पर जाबाँज गँवाकर
बात करें, ज्यों पहुंचे जोगी
वो कवि प्रदीप अब नहीं रहे
ऐ मेरे वतन जो लिख के गए
दिनकर को अब ढूंढो मत
जो समर शेष बतला के गए
लता दीदी जब बच्ची थीं जब
पी.एम्. की आँखें हुईं नम
आज कौन वो भाव भरेगा
हर मैं को बनाएगा वो हम
कौन कौन सा टी. वी. तोडूं
किसका मैं मोबाइल पटक दूँ
चीन घुसा कतरे कतरे में
चाहे जो सामान झटक दूँ
हम गलती हैं नहीं मानते
हर बात का है कोई बहाना
पढ़ना लिखना भूल गए हम
विश्व गुरु जो खुद को माना
ऐसे में हिल जाती बिलकुल
कवि की लेखनी भी है बहकती
हल जब कोई सुझाई न देता
अंगारों सम आग बरसती
हमसे ही वरदान ये पाकर
बने ये देश हैं भस्मासुर
तस्वीर तभी सकती है बदल
जब हर बच्चा हो रण बाँकुर
आत्म निर्भरता तभी भली जब
आत्म सशक्तता हो पूरी
वक़्त को ठीक सकें पहचान
छोड़ सकें हर मजबूरी
हममें गुस्सा है या ढोंग है
सही फैसला करना होगा
आत्म सम्मान बचाकर पूरा
परिस्थिति से उबरना होगा
बदले की आग रखकर जलाये
चतुराई दिखलानी होगी
दुनिया को संग लेना होगा
सच्चाई बतलानी होगी
यू.एन.ओ. अब फिर से बनाओ
सब नियम पुराने बदलवाओ
हर छठा बच्चा है भारत का
दुनिया को ताक़त दिखलाओ
नयी कलम से नयी इबारत,
नयी आदतें लानी होंगी
थोड़ा सा त्याग, ज़्यादा सी मेहनत
अपनी ही बुलेट बनानी होगी
– सुनील जी गर्ग
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