यूं ही उकेर दिए कुछ अल्फाज़ यहाँ पर, दिल का असली मक़सद छिपा लिया तो क्या ऐसे मजबूरियां कहाँ सुलझती हैं बन्दों, मालिक से अपना मुँह फिरा लिया तो क्या नोट: पहली दो पंक्तियाँ अलग से एक महीना पहले लिखीं थीं
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