नश्तर से मंजिल     


Poems : Self Flows09-Aug-2015


मेरी बंद है जुबान, तभी तो कविता लिखी है,
गुनाह करने के बाद, सज़ा से बचने की उम्मीद सी दिखी है|
सोचा दिल का हाल, लिख कर दूं बयां,
कोई पढ़ लेगा तो, किस्मत हो जायेगी रवां |
बुराई से लड़ने का, रास्ता होता है कभी बुरा ,
समझने, समझाने से निकलता है कभी हल अधूरा |
हुआ करे अपराध बोध दुख जाएँ कई दिल,
नश्तर चलाना होता है बेहतर, अगर मिलती हो मंजिल |
हाँ सच है कि इस मंजिल की परिभाषा हमने गढ़ी है,
मुश्किल है तुमको, तो हमको भी नहीं आसान ये घड़ी है |
माफ़ कीजीयेगा, किस्मत की ये लकीरें हमने नहीं खीचीं हैं,
तूफ़ान तो उठ चुके थे तभी, जबसे आपने हमारी तरफ से आँखें मीचीं हैं|
उम्मीद का दामन, छोड़ता नहीं जो सच्चा माझी,
नावें तो उसी की, साहिल से जाके लगी हैं ||
मिलकर नाव खेते तो अच्छा था, अब तो बस उम्मीद का साथ बचा है,
अकेलेपन की तोहमत हमपे न लगाना, साथ निभाने को हमारी अब भी रजा है|

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