मेरी तरफ से धन्यवाद के रूप में प्रस्तुत है ये रचना –
इक वो जगह थी बड़ी अनोखी,
जहाँ मिले इप्शिता, सुनील।
मधुर बने, रसोगुल्ले जैसे,
रिश्ते हुए और हसीन ||
रिश्ते हुए और हसीन,
नवाज़िश थे अशु असीम |
मकरंद, वंदना हाज़िर थे सदा,
अनाहिता ने बनाई थी थीम ||
गाकर सजीली महफिल में,
मिहिका ने लगाए चार चाँद |
लगा ज़मीं पर उतरे सितारे,
जब नाना-नानी का हुआ डांस ||
दादा, दादी का मिला आशीष,
दादा की कविता उपयुक्त थी |
फैमिली थी बड़ी, दोस्त थे अनेक,
पूरी टोली ये चुस्त थी ||
संगीत संध्या थी मार्के की,
घर वाले बने बिलकुल प्रोफेशनल |
दूल्हा, दुल्हन नाचे और बोले तो
माहौल हुआ बिलकुल इमोशनल ||
सुन्दर थी हर रस्म बड़ी,
मेंहदी, हल्दी, गौर, जयमाल |
मोटरसाइकिल पर आकर दूल्हे ने,
मचा दिया टोटल धमाल ||
जब विदाई की आयी बेला,
आँखों में नम मुस्कान थी |
अलग आभा थी, संजीदगी थी,
इस जोड़े की अब अलग पहचान थी ||
अब क्या बोलें ज्यादा,
सबको यथायोग्य लिखते हैं |
ऐसे समारोह से परिवार में,
और मज़बूत, सम्बन्ध उभरते हैं.||
– सुनील जी गर्ग
(Written to share my experience of marriage of Ashu-Aseem’s Daughter Ipshita with Sunil of Kolkata)