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Poems : Shayari


हमारे वो मशहूर थे

01-Dec-2021

एक बार अखबारों में लिखा जाऊं
हसरतें अब हो चुकी हैं पूरी
फिर चाहे रद्दी में बिकुं गम नहीं
पीदियाँ कहेंगी, हमारे वो मशहूर थे

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जिन्हें शौक् था,
अखबारो के पन्नों पर बने रहने का..!
वक़्त गुज़रा तो,
रद्दी के भाव बिक गये..!

मुँह फिरा लिया तो क्या

09-Jul-2020

यूं ही उकेर दिए कुछ अल्फाज़ यहाँ पर,
दिल का असली मक़सद छिपा लिया तो क्या
ऐसे मजबूरियां कहाँ सुलझती हैं बन्दों,
मालिक से अपना मुँह फिरा लिया तो क्या

नोट:
पहली दो पंक्तियाँ अलग से एक महीना पहले लिखीं थीं

तराशो दिल लगाकर

06-Jun-2020

अनुभूतियाँ रूह को जगाती हैं
इंसान की,
पत्थर को तराशो दिल लगाकर,
फिर देखो बानगी |

हमें क्या पता था

27-Mar-2020

एक के बाद एक तराने तरन्नुम में, 
हम उनके लिए सुनाते चले गए 
हमें क्या पता था वो बहरे थे
जिनके लिए हम गाते चले गए

इन्साफ का ड्रामा

13-Mar-2020

सच झूठ कुछ नहीं होता,
करीब करीब सबको होता है पता।
मगर इन्साफ का ड्रामा यक़ीनन है ज़रूरी,
आखिर किसी के तो मत्थे जड़ी जायेगी खता ।।

बुझा के क्यों देखते हो

13-Mar-2020

कभी यकबयक मारते हो नश्तर,
कभी दफ़्अतन पुचकारते हो।
यूं भी समझ कम मिली थी हमको,
बुझा के क्यों देखते हो जो दिए बालते हो।।

एक चीज़ आज मांग लो

27-Jan-2020

तुमको दिल दिखायें या दिमाग़,
एक चीज़ आज मांग लो हमसे |
ज़्यादा न सोचना क्या है तुम्हारी ज़रुरत,
घड़ी ऐसी न शायद आयेगी फिर से ||

बचते ला-मज़हबी

27-Jan-2020

कौन कैसे करेगा इबादत,
आता है अब बादशाह का फ़रमान|
ला-मज़हबी कुछ लोग बेचारे ,
बचाते फिर रहे हैं अपनी जान ||

ला-मज़हबी = aethist (ईश्वर में विश्वास न करने वाला)

दरख़्त -ए-ज़हर

27-Jan-2020

अगर तुम बोओगे ज़हर के बीज ,
फिर वैसा ही निकलेगा दरख़्त |
कभी देखा है तुमने कभी,
कि मुआफ़ कर देता हो वक़्त ||

शागिर्द

24-Jul-2019

तेरी बात काटूं करता है मन,
बोलता है तो सोचूं डालूं खलल ।
तेरा सही भी ग़लत लगता है मुझे,
अनसुना कर मुझे तू बोलता रहा कर ।।

धीरे धीरे तुझसे भी कुछ जान ही लूँगा,
मुझे पता है मुझमें ये आदत है ।
तू खोज और नई बातें बता,
सीखने की मुझमें भी शिद्ददत है।।

जाग सकता है

24-Jul-2019

पास आकर के बोला मेरा रहनुमा,
गुमां है तुझ पर निकलकर तो आ ।
मैं नहाया धोया तैयार हो गया,
वो अब न मिला तो मैं फिर सो गया ।।

कोई आएगा बुलाएगा यूं आदत बना ली,
मैं उठता था कम और नींद ज़्यादा ली ।
किसी ने कहा जब जागो सवेरा,
खुद अपनी समझ हो, मिटेगा अँधेरा।।

अब हैं नहीं

24-Jul-2019

सांसें किसी की किसी के पास
किसी को कुछ और सांस की आस
कोई ज़्यादा पाया है फिर भी उदास
अपने पास हैं नहीं इसीलिए बिंदास

सांस निकलने के बाद आत्मा ने लिखी हो जैसे ये कविता

नहीं है कमी

23-Jul-2019

शबे गम या सहरे हंसी
गुजरते पल थोड़े से यूँ ही,
ख़ाली पैमाने मगर नहीं है कमी
पैरों के नीचे अभी पूरी है जमीं ।

दर्द की भूख

23-Jul-2019

दर्द तुमने दिया या हमने खुद ही लिया,
खुद से यही बहस करके किया वक़्त बर्बाद,
किसी दिन गुजरा लम्हा थाली में परोस देना हमें
भूख मिट जायेगी दर्द की भी, आएगी जो तेरी याद ।

ढक्कन

23-Jul-2019

यूँ ही ढक्कन समझ कर छोड़ा न करो उनको
सही चूड़ी चढ़ाओगे तो आएंगे काम,
छलक जाएंगी भरी बोतलें इनके बिना
ख़ास मकसद होता है उनका भी जो होते हैं आम ।

नकली शायर

22-Jul-2019

नक़ल में तेरी किया काला कागज़
तो शायर समझ बैठा खुद को
याद कर लिए कुछ चेहरे यूं ही
बस महबूबा समझ बैठा इक बुत को

कंफ्यूज आशिक़

22-Jul-2019

प्यार और मोहब्बत में फरक तो है ज़रूर
धोखा किसमें खाया है पता ही नहीं लगता
ऊपर से मुया इश्क़ कर देता है कंफ्यूज
हमें जो हुआ है उस पर कुछ फिट नहीं बैठता

खाली हाथ आना

22-Jul-2019

अबके आना तो खाली हाथ आना
कुछ ज़्यादा ही भरा बैठा हूँ मैं,
लौटा न दूँ कहीं कुछ पुराने तोहफे
कल ही अलमारियों को समेटा हूँ मैं

वो और थे

22-Jul-2019

काहे देते फिरते हो गालियाँ सबको,
वो और थे जो मानते थे बुरा
वक़्त ने मोटी कर दी है चमड़ी इतनी
होने वाला कुछ नहीं चाहे मार दो छुरा

राजा का बेटा

22-Jul-2019

कभी सारी सोच तुम्हीं को गयी थी बक्शी
हम थे पैदल, मोटर नहीं थी नसीब
राजा का बेटा ही नहीं बनेगा राजा अब
मेहनत से हक़ पायेगा अमीर हो या गरीब



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