ईश के आकार का तुममें,
नमन हृदय से करता हूँ ।
नमस्कार ये सोच बनाया,
वंदन वेदों का करता हूँ ।
नमस्ते या नमस्कार हमारी संस्कृति में ऋग्वेद से ही आता है। बिना भौतिक स्पर्श के किसी को
अभिवादन एक तरह की खोज ही है। ये इस बात को इंगित करता है कि किसी को संक्रमण न हो इस बात को उस काल के ऋषि मुनि समझते थे।
वातावरण शुद्ध रखने के लिए हवन इत्यादि भी इसी समझ का रूप है।
सुनील जी गर्ग
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